Parenting tips Rani Mukherjee Mrs chatargy V/S Norway-17 मार्च को रानी मुखर्जी की फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नार्वे (Mrs chatargy V/S Norway) रिलीज हो रही है| 23 फरवरी को फिल्म का ट्रेलर आया| एक यह है कि इमोशनल फिल्म है जो सागरिका चक्रवर्ती की लड़ाई की असली कहानी पर आधारित है|

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Parenting tips Rani Mukherjee Mrs chatargy V/S Norway-क्या है कहानी
सागरिका चक्रवर्ती कोलकाता से हैं उनकी शादी जियोफिजिस्ट अनुरूप भट्टाचार्य से हुई साल 2007 में कपल भारत से नार्वे आ गया| 1 साल बाद उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम रखा अभिज्ञान|कुछ समय बाद अभिज्ञान में आटिज्म के लक्षण दिखने शुरू हुए। साल 2010 में सागरिका ने बेटी ऐश्वर्या को जन्म दिया|सागरिका व अनुरूप अपनी जिंदगी हंसते खेलते जी रहे थे| साल 2011 में नार्वे की चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज के अधिकारी अभिज्ञान और ऐश्वर्या को अपने साथ ले गए|अधिकारियों ने कहा कि कपल को बहुत समय से आब्सव किया जा रहा था| यह दोनों अपने बच्चों की सही तरह से देखभाल नहीं करते हैं|इसलिए बच्चों को 18 साल की उम्र तक फोस्टर होम में रखा जाएगा||इसके बाद सागरिका चक्रवर्ती ने अपने बच्चों को वापस पाने के लिए 1 साल से भी लंबी लड़ाई लड़ी | इस दौरान पति अनुरूप से रिश्ता टूटने की कगार पर भी पहुंच गया था | लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी| इस मामले में सागरिका का के पेरेंट्स के इंडियन तरीकों पर नार्वे में सवाल उठाए गए थे| आज जरूरत की खबर में बात उसी पर करेंगे|
सबसे पहले जान लेते हैं कि बच्चों की परवरिश पर नार्वे(Mrs chatargy V/S Norway) का कायदा क्या कहता है|
- अगर अपने ही घर में बच्चों पर किसी तरह का खतरा हो तो चाइल्ड वेलफेयर सर्विस बच्चों को अपने अधिकार में ले सकती है इसके लिए उन्हें पेरेंट्स से परमिशन लेने की जरूरत नहीं है|
- अगर किसी बेबी को बेस्ट हेल्थ सुविधाएं और डिवेलप फैसिलिटी नहीं मिल रही है तो यह संस्था बच्चों को अपनी कस्टडी में ले सकती है|
- बच्चे को अलग करने के बाद परिवार को हर 2 हफ्ते में एक बार उन्हें देखने का मौका मिलता है|
- नॉर्वे में बच्चों और उनके अधिकारों के प्रति स्पष्ट कानून है और बच्चों के साथ किसी तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाता है| उनके लिए पेरेंट्स का हाथ उठाना भी हिस्सा का एक तरीका है|
अब तुलना करते हैं नार्वे(Mrs chatargy V/S Norway) और भारत के परिवेश के तरीके पर
बच्चों को अपने हाथ से खिलाना
नॉर्वे का लॉजिक– डाइनिंग टेबल मैनर्स के हिसाब से छुरी चम्मच और कांटे से खाना खाना खाना चाहिए| खुद के हाथ से खाना हाइजीनिक नहीं होता | ऐसे में मां के हाथ से खाना (दूसरे के हाथ से) अनहाइजीनिक है| छोटी उम्र से ही अगर बच्चा खुद से खाना खाएगा तो उसमें आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना डेवलप होगी |यह भी पढ़ें–मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे’ दिल दहलाने की पूरी कहानी|
इंडियन पैरंट्स का तरक– बच्चे खाना आधा खाते हैं और दाग रहते हैं उनका इंटरेस्ट खाने में कम होता है खाना और से खिलाने पर बच्चे का पेट सही तरह से भर जाएगा|
एक्सपर्ट्स की राय– एक्सपट्र्स की मानें तो हाथ से खाना खिलाने से छोटे बच्चे का बान्ड पेरेंट्स के साथ मजबूत होता है| यह भी ध्यान रखें कि आपके हाथ साफ होनी चाहिए ताकि कीटाणु बच्चे को भी मारने कर सके|
कंक्लुजन– इसमें कोई बुराई नहीं है| लेकिन यह उम्र तक ही सही है कोशिश करें कि 3 साल से बड़ा बच्चा अपने हाथ से खाना खाए
बच्चों को अपने साथ है कि बिस्तर पर सुलाना
नॉर्वे का लॉजिक(Mrs chatargy V/S Norway)- अकेले सोने से आत्मनिर्भरता बनेगा| वह अपने बच्चों को झूले या प्रेम में डालकर घर के बाहर भी सोने के लिए छोड़ देते हैं| इसके पीछे लॉजिक है कि इससे में सांस लेने में मदद मिलती है स्लीपिंग पैटर्न में सुधार होता है बच्चा हल्दी रहता है|
इंडियन पैरंट्स तर्क-बच्चा छोटा है तो बेड से गिर सकता है रात में उसे कोई तकलीफ होगी तो उसे बता नहीं सकता ऐसे में मां या पिता पास होंगे तो रोने की वजह है समझ पाएंगे उसका ख्याल रखेंगे|
एक्सपर्ट्स की राय– एक्सपर्ट्स की मानें तो 5 साल के बच्चों को अपने साथ सुलाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन एक एज के बाद बच्चों को अकेले सोने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे वह इंडिपेंडेंट बनेगा|
कंक्लुजन– अगर बड़े बच्चे को भी पेरेंट्स साथ सुलाएंगे तो उनमें कॉन्फिडेंस कम हो सकता है| साथी टीनएज में पूहचने पर उन्हें आइडेंटिटी क्राइसिस और रोल कंफ्यूजनभी हो सकता है| जो कि बच्चे की पर्सनैलिटी के लिए ठीक नहीं है|
बच्चों को डांटते हैं और उन पर हाथ भी उठाते हैं|
नार्वे का लॉजिक– बच्चों को डांटना सजा देना या उन पर हाथ उठाने का कोई फायदा नहीं होता| कुछ समय के लिए बच्चे वह काम नहीं करेंगे| लेकिन बाद में उन्हें गलतियों को दोहराएंगे| इससे बेहतर है कि उन्हें बैठकर लाजीक के साथ सही गलत बताया जाए|
इंडियन पैरंट्स का तर्क -बच्चे को समझाने पर भी जब वह नहीं समझता तो डांटने और हाथ उठाने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचता| ऐसा कर्म बच्चे को अभी से सही दिशा दिखा रहे ताकि बड़े होने पर या उसके साथ में रहने पर गलत रास्ते पर ने भटके|
एक्सपर्ट्स की राय-एक्सपर्ट्स की मानें तो बच्चों पर हाथ उठाना सही नहीं है| उसे बताएं कि क्या सही है और क्या गलत है| गलत चीज कर रहा है तो उसे डांट कर समझाएं छोटी मोटी बातों पर हाथ उठाएंगे तो बच्चे के अंदर से आपका डर खत्म हो जाएगा| वह गलती करने से पहले नहीं सोचेगा आपसे झूठ भी बोलेगा|
कंक्लुजन– पहले की तुलना में आजकल के बच्चे काफी सेंसेटिव हो गए हैं| कुछ बच्चे मेंटली इससे काफी इफेक्ट हो हो जाते हैं |डिप्रेशन में चले जाते हैं वहीं कुछ बच्चे ढिढ बन जाते हैं| इसलिए जेंटल पेरेटींग अपनाएं|
बच्चों को प्राइवेसी दें लेकिन इन पांच बातों का रखें ख्याल
- बच्चों को अलग रूम दे लेकिन दरवाजे के अंदर कल आप निकाल दें ताकि हम ना होने पर वह मदद के लिए बुला सके
- बड़े बच्चे को छोटे भाई बहन के साथ बेडरूम शेयर करवाएं
- इंटरनेट और फोन दे पेरेंट्स कंट्रोल ऐप जरूर यूज़ करें
- कमरे में बच्चे को बंद मत करें इससे वह दब्बू हो जाएगा
- बच्चे का सोशल मीडिया मैनेजर करते रहें लेकिन उस पर शक ना करें
इंडियन पेरेंट्स की कुछ औरआदतेंजो विदेशियों को गलत लगती हैं
बच्चों को एक उम्र के बाद भी खुद नहलाते हैं|
एक्सपर्ट्स की राय– ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए इस तरह है बच्चों के अंदर आइडेंटी डिवेलप नहीं हो पाएगी| वह समझ नहीं पाएंगे कि सोसाइटी में उनका रोल क्या है और वह आगे करना क्या चाहता है वह पेरेंट्स पर निर्भर हो जाएंगे|
क्या करें– बच्चों पर सख्ती न करें इससे उन पर नेगेटिव असर पड़ेगा| उन्हें इस बात का डर हो कि पेरेंट्स नजर रख रहे हैं| उन्हें दोस्तों की तरह ट्रीट करें ताकि वह अपनी छोटी से छोटी बात बताएं|
नौकरीपेशा या शादीशुदा बच्चों के साथ एक ही घर में रहते हैं|
एक्सपर्ट की राय– हमारे यहां बच्चे को अपना सारा माना जाता है इंडिया में पेरेंट्स इन सिक्योर होते हैं उन्हें लगता है कि अगर बच्चा अलग रहेगा तो उनसे दूर हो जाएगा इससे बच्चों और माता-पिता के बीच दूरी बढ़ जाएगी यह भी सच है कि बच्चों के बड़े होने के बाद उनके साथ रहने से फायदा भी है परिवार के सब लोग एक दूसरे के साथ में स्कूल में खड़े रहते हैं खुशियां साथ में सेलिब्रेट करते हैं
क्या करें -बच्चे आपसे दूर ना हो इसके लिए उसे समझे उसे आए बदलाव को ऐसे एक्सेप्ट करें साथ ही साथी हर चीज के लिए उन्हें रोकना टो करना बंद कर दें| याद रखें कि अब वह स्कूल जाने वाला बच्चा नहीं है| वह अपने बारे में कुछ फैसला ले सकता है|
नौकरी लगने तक बच्चों का पूरा खर्च उठाते हैं
एक्सपर्ट की राय– भारत में ज्यादातर पेरेंट्स बच्चे का तब तक खर्च उठाते रहते हैं जब तक और नौकरी न लगने लगे| कई बार तो नौकरी लगने के बाद भी इसके अलावा बच्चे के लिए संपत्ति भी अजीत करके रखते हैं| इससे बच्चे इमोशनली फाइनेंस ली और फिजिकली पेरेंट्सपर निर्भर हो जाते हैं| और आत्मनिर्भर नहीं हो पाते|
क्या करें– आप बच्चे के भविष्य को लेकर एक पेरेंट्स के तौर पर चिंतित है| यह अच्छी बात है ध्यान रहे इस चक्कर में बच्चा अपने कैरियर और फ्यूचर को हल्के में ना लें उसे अपनी रिस्पांसिबिलिटी का एहसास होना चाहिए|
बच्चों के बीच कंपैरिजन करने से होंगी 4 परेशानियां
1.पेरेंट्स के कंपैरिजन करने की आदत से बच्चे का कॉन्फिडेंस कम होता है.
2.जिन बच्चों से तुलना की जा रही है उनसे बच्चा चीढ़ने लगता है.
3.बच्चा खुद पर सवाल करने लगता है और इन सिक्योर हो जाता है.
4.तुलना करने से बच्चा विद्रोही हो जाते हैं लगता है कुछ भी कर लो मम्मी पापा तो उसे पसंद नहीं करेंगे|